शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

कब बदलेगी यह मानसिकता ......


हमारे देशी में हर दूसरा आदमी यंहा व्याप्त गरीबी को देख कर सरकार को कोसने की आदत से मजबूर है, लेकिन क्या कभी हमने ख़ुद इसके उन्मूलन में कुछ योगदान दिया है? अब आप कहेंगे की महंगाई के इस दोर्र में ख़ुद अपने परिवार की गाड़ी चलने में ही इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, भला हम देश की गरीबी मिटने मं क्या योग्दाद दे सकतें हैं? भले ही आप देश की गरीबी का समूल नाश नही कर सकते, देश के एक-दो बेरोजगारों को भी आजीविका नही दे सकतें लेकिन लेकिन कम से कम उनका हक मरने से तो बाज आ ही सकतें हैं। जी हाँ, अपने देश में ऐसे लोगों की कोई कमी नही है। अब मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर को ही ले लीजिये वंहा से ख़बर आई है की वंहा के नागदा प्रशासन ने ऐसे ६०० संपन्न लोगों की पहचान कर ली है जो गरीबों का हक मरर रहे थे। इन् लोंगों के पास खाने, रहने की कोई कमी नही। काफी संपत्ति है, अपना घर है, सुख सुविधा का साजो सामान है लेकिन फिर भी बीपीअल (बेलोव पोवेर्टी लाइन) का कार्ड बनवा कर गरीबों को दी जाने वाली चीनी, चावल, अनाज और अन्य मूलभूत सुविधाओं का उपभोग कर रहे थे। यह मानसिकता केवल उज्जैन तक ही सिमित हो ऐसा नही है, वंचितों का हक मरकर अपना स्वार्थ साधने की ये प्रवत्ति काफी विस्तृत रूप ले चुकी है। अपने आस पास ही आपको कितने ही ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनका अपना घर फल, सब्जिओयों, अनाज से भरा पड़ा है लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर ही सही लेकिन गरीबों के लिए लगाने वाले भंडारों की लाइन में लग कर भूखे पेटों का हिस्सा छिनते नजर आंतें हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapka blog padane me nahi aa raha hai, templete badal le,shayad padane me aa jayen.

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  2. रश्मिजी, गरीबों का हक छिनना नेताओं की पसंद है। यही हमारे की व्यवस्था भी है।

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