सोमवार, 17 मई 2010

इकलौता मुसलमान......


चैन्ने की वजाहत मस्जिद के उस बरामदे में देर रात तक ६ लोग कलम, स्याही, रूलर की मदद से ३ घंटों में ४ कोरे पन्नों को "मुसलमान" नामक अखबार में बदल देते हैं।

फिलवक्त वह दुनिया का एकलौता हस्तलिखित अखबार है। पिछले ८१ सालों से कुल ६ लोगों क स्टाफ की बदोलत रोजान अपने २२ हज़ार पाठकों तक पंहुच रहा है। तक़रीबन ८०० वर्ग मीटर के दाएरे में बने उस एक कमरे के कार्यालय में तो एसी की ठंडक है और न ही प्रकाश की आधुनिकतम व्यवस्था। न कंप्यूटर है और न ही कोई टाइप राईटर। वंहा अगर कुछ अहि तो बस लोगों की लगन और मेहनत, जिसने "मुसलमान" नामक उर्दू अखबार को सबसे अलहदा बाबा दिया है।


'पिछले ८१ सालों से हम सब इसी तरह मिलजुलकर काम कर रहे हैं। जिंदगी ने साथ न निभाया हो या उम्र का तकाजा हो तो और बात है, लेकिन कभी कोई कर्मचारी यंहा से नौकरी छोड़ कर नहीं गया है।' यह कहते हुए रहमान हुसैनी गर्व से भर जाते हैं। हुसैनी इस समय देश के सबसे पुराने और सम्प्रति एकलौते हस्तलिखित उर्दू अखबार में चीएफ़ कॉपी राईटर के ओहदे पर काम कर रहे हैं। २० साल पहले रहमान ने इस उर्दू अखबार में खजांची की हसियत से काम करना शुरू किया था। फिर धीरे-धीरे उर्दू में कैलीग्राफी सिखने और खबरों में दिलचस्पी बढ़ने के साथ उन्होंने अखबार के पन्नों को भी देखना शुरू कर दिया। रहमान ही नहीं बल्कि इस अखबार से जुड़े बाकि कर्मचारी भी कई-कई सालों से इस उर्दू दैनिक में कार्यरत हैं। इसके पीछे वजह सिर्फ एक ही है और वह है की यंहा स्टाफ व्यावसायिक मानसिकता से नही बल्कि एक परिवार की भावना से काम कर रहा है।

चैने क त्रिप्लिकाने हाई रोड ऑफिस में स्थित "मुसलमान" अखबार को १९७२ में सैयद फैजुल्लाह ने अपने वालिद सैयद अज्मतुल्ला के सरंषद में शुरू किया था। सैयद फैजुल्लाह ने एक संपादक की हैसियत से अखबार को तरक्की देने के लिए अपनी साडी जिंदगानी इसी के नाम कर दी। दो साल पहले ७८ साल की उम्र में सैयद साहब दुनिया से रुखसत हो गए। लेकिन किसी के जाने से जिंदगी कान्हा रूकती है। पिछले ८१ सालों से अपने पाठकों का यह प्रिय अखबार रोजाना बदस्तूर महज ७५ पैसों में उन तक पहुँच रहा है। इतने सालों में कुछ भी नही बदला है। न तो करमचारियों के जज्बे में कोई फर्क आया है और न ही काम के तौर-तरीकों में। आज भी ८०० वर्ग मीटर के उस कमरे में जन्हा प्रिंटिंग का काम भी होता है। चारों तरफ बिखरे कागज के बीच अख्व्बार का सारा स्टाफ बड़ी तालिन्न्त्ता से अपने काम में व्यस्त मिलता है। कॉपी एडिटर्स देर रात तक बैठकर कलम और स्याही के जरिये ४ कोरे पन्नों पैर उर्दू भाषा में खबरों को बारीकी से उकेर्तें हैं। पहले पन्ने पर देश-दुनिया की प्रमुख खबरों को जगह मिलती है और दुसरे तीसरे पन्ने पर स्थानीय खबरें दी जाती हैं। चौथा पन्ना खेल जगत के समाचारों का रहता है। अखबार में विज्ञापन लगाने के बाद समाचार में लिखाई का काम होता है। गलतियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है क्यूंकि एक भी गलती हो जाने पैर पूरा समाचार पत्र दुबारा बनाना पड़ता है। सैयेर साहब के बेटे आरिफ का कहना है की उनके अखबार "मुसलमान" के २२ हज़ार खरीददारों में से अधिकतर ऐसे हैं जिन्हें केवल उर्दू पड़ना ही आता है। वह भी अपने पाठकों का ख्याल रखकर खबरों का चुनाव करते हैं। न्यू डेल्ही, कोलकत्ता, हैदराबाद आदि जगहों में आखबार के संवादाता हैं। जो फ़ोन फाक्स आदि के जरिये खबरें भेजते हैं। बदती प्रसार संख्या के बावजूद भी अखबार ज्यादा मुनाफ्फा नहीं कम पता है। लेकिन संस्था ने हिमात नही हरी है। "हम साफ़ नियत से अपना काम कर रहे हैं और हमें पूरा यकीं है की हम मिलकर "मुसलमान" अकबार को बुलंद मुकाम तक जरुर पहुंचाएंगे।" यह कहते हुए आरिफ की आँखों में उम्मीद की एक चमक तैर गयी।