
यमनोत्री से निकल कर, इलाहाबाद में गंगा में समां जाने वाली यमुना नदी, सात राज्यों से गुजरती है। अपनी उद्गम स्थल से लेकर लेकर ताजेवाला ( १७२ किलोमीटर) तक अथार्थ पर्वितेय इलाक़े में ही यमुना का पानी साफ़ मिलता है। जैसे-जैसे यह आगे बदती जाती है, पानी की रंगत बदलने लगती है। बाकि की रही-सही कसार दिल्ली में प्रवेश करते ही पूरी हो जाती है, क्यूंकि यंहा यमुना नदी २२ किलोमीटर लम्बे नाले में परिवर्तित हो जाती है। दिल्ली में यमुना २२ किलोमीटर बहती है, जो इसकी कुल लम्बाई का महज २ प्रतिशत ही है। लेकिन यमुना के दूषित होने में, ७० फीसदी योगदान भी दिल्ली का ही है। जल में बढते प्रदुषण का तो एक मुख्य कारणदिल्ली की ४५% प्रतिशत आबादी अनाधिकृत iकालोनियों में रहती है। जहाँ गन्दगी के समुचित निस्तारण की व्यवस्था न होने का खामियाजा भी यमुना को ही भुगतना पड़ता है। वर्ष २००१ में यंहा सीवेज व्यवस्था का महज १५ प्रतिशत हिस्सा ही चालू हालत में था। हालाँकि पिछले ४० वर्षों में सीवेज ट्रीटमेंट में लगभग ८ गुना की बढोतरी हुई है लेकिन इसके साथ ही १२ गुना कचरा भी पैदा होने लगा है। इसलिए आवश्यकता के अनुरूप शोधन का दिल्ली में अभाव है। यमुना को साफ़ करने की सरकारी कवायद में करोड़ों रूपये बहाने के बाद भी, यमुना की हालत जस की तस है। यमुना एक्शन प्लान, सी टी ऍफ़ से क्लोरोफार्म हटाने, दूषित पानी के शोधन और ओद्योगिक कचरे के निस्तारण सम्बन्धी कार्ययोजनाओं के बाद भी हालत सुधरी नही है। क्यूंकि प्रयासों में इमानदारी और जनभागीदारी का अभाव है।
अब वक्त आ गया है की हम अपनी जिम्मेदारी को समझें और अपनी प्राकर्तिक, धार्मिक सम्पद्दा के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आगे आयें..... क्यूंकि इस कलयुग में श्री कृष्ण तो अवतार लेने से रहे.....!!!
very nice mam
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