शनिवार, 20 सितंबर 2025

जीवन की पहेली

आज फिर एक कविता लिखने का जी आया.. 

कुछ बंधा कुछ थमा दरिया बह जाने को आया, 

न जाने कुछ लोग कैसे पल में अपने बन जाते हैं.. 

और कुछ अपने भी हमें सालों भी समझ नहीं पाते हैं।

क्या साथ होना ही बस काफी है? 

या साथ होकर भी साथ न देना?

मन की परतें कौन समझ पाता है या 

हर शख्श यँहा तन्हा ही रह जाता है.. 

या तन्हाई सिर्फ कुछ के हिस्से आती है, 

ये प्रीत की डोरी किसी से जुड़ कर भी, मज़बूती न पाती है! 

आखिर क्या वजह है जीवन खाली सा क्यों लगता है, 

क्या साध्य है? क्या साधना है? क्या हासिल करने को जी करता है?

सवाल कई हैं..जवाब कहीं नहीं.. 

आखिर क्या और किससे कहने को जी करता है? 

जीवन न हुआ जैसे कोई अंतहीन पहली है, जो उलझी है कंही, 

जिसे सुलझा लेने को जी करता है...

Dr. Rashmi Verma

22.09.2025

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