रविवार, 15 नवंबर 2009

तो क्या स्त्री सशक्त हुई?


दिल्ली की अत्याधुनिक बस में दिन दहाड़े एक कामकाजी महिला, नीलू सक्सेना के साथ उस दिन जो हुआ, वह तो महज एक बानगी भर है, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार की। आम दिनों की तरह नीलू ने बस पकडी। उन्हें बस कुछ स्टाप दूर ही जाना था। उस लो फ्लोर बस में काफी भीड़ होने की वजह से वह ड्राईवर की सीट के पास ही खड़ी हो गई। थोडी ही देर में कुछ मनचले लडकें उनके पीछे आकर खड़े हो गए और लगे अपनी बेहूदा हरकतें करने। नीलू ने जब उन्हें ठीक से रहने को कहा तो उसकी हँसी उड़ने लगे। नीलू वंहा से हटकर जाने लगी तो एक लड़के ने उसे पैरों से फंसा कर गिराने की कोशिश की। इस हरकत पर लड़कों को डांटने और प्रतिरोध जताने पर उन्होंने नीलू के साथ हाथापाई करनी शुरू कर दी। हैरत की बस केन्डूक्टोर और ड्राईवर ने न ही आपत्ति जताई और न ही इस बाबत वंचित करवाई की। हद्द तो तब हुई जब बस में भरी भीड़ ने भी नीलू को बचने की कोशिश नही की उल्टा लड़खों को सीटों पर बैठे बैठे उकसाते रहे और अकेली महिला को पीटते देख तमाशे का मजा लेते रहे।

जब देश की राजधानी में ये हाल है तो गली कस्बों में क्या नज़ारे होते होंगे, उसकी आप कल्पना कर सकते हैं। महिलाओं के लिए काम करने वाले एक संगधन सेंटर फॉर इकुईटी एंड इन्क्लुसिओं के शोध में यह बात सामने आई है की महिलोयें यंहा ख़ुद को बिल्कुत भी सुरक्षित नही मानती। करीब ९८.६ महिलाओं का कहना था की उन्हें अक्सार छेड़ छड़ का सामना करना पड़ता है। इससे कुछ दिनों पहले ही उतरी करोलिना की एक संसथान आर.टी.आई इंटरनेशनल ने भारत में किए गए अपने रिसर्च के जरिये बताया है की करीब ८० फीसदी महिलाएं घरेलु हिंसा की शिकार हैं। यानी घर में भी सुरक्षित नही। ऐसे माहोल में "स्त्री सक्शक्तिकरण के दावों की पोल खुलती है।

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