रविवार, 24 अक्तूबर 2010

आज मैंने खुशबू को छुआ....

हाट में बिकते खिलोनो में...
वहां सजती... खनखनाती चूड़ियों में..
कटे गन्नों और बताशों में..
झूलों पर झूलते बच्चों की उन्मुक्त हंसी में...
मेले में जहाँ-तहां रमते उस सौंधेपन को छुआ...
हाँ... मैंने आज खुशबू को छुआ....

गुजरते हुए गाँव की उन संकरी पगडंडियों से...
वहां बहती ठंडी-ठंडी बयार में...
लहराहते पोधो की क्यारियों में सिमटी...
गीली मिटटी से आती उस ताजगी को छुआ...
हाँ... मैंने आज खुशबू को छुआ...


(रांची के स्थानीय मुंडमा मेले से वापस लौटकर)

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