
कोई बरसों पुराना नाता भी नहीं....
न इसके किनारे बचपन मेरा बिता है...
न ही इसे निहारते हुए संग किसी के,
कोई सपना हसीं देखा है...
फिर न जाने क्या वजह है
ये सरल सलिला...
मुझे इतना क्यूँ भाती है...
कल-कल करती, अनवरत बहती ये नदी...
मुझसे कुछ तो कहना चाहती है...
कई पड़ाव पार कर, कई खरपतवारों को साफ़ कर
इसने अपनी राह बनायीं है...
दुर्गम रास्तों से गुजर कर, जटिलताओं से उबरकर
ये अपने सही पथ पर आयी है...
तब भी उतनी ही निर्मल... स्वच्छ... निश्छल...
शायद यही कहना चाहती है मुझसे
हाँ... बस यही मैंने इससे सीखा है।
hey nice yaar
जवाब देंहटाएंhi rashmi
जवाब देंहटाएंkafi aacha likh lete ho mujhe to pata hi nahi tha ki tum itna aacha bhi likh sakti ho
gud keep it up